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इंटरव्यू : पाखी संपादक प्रेम भारद्वाज की पटना में अमित किशोर से बकैती
हर जगह की तरह पटना पुस्तक मेले में भी पाखी संपादक प्रेम भारद्वाज अपनी छाप छोड़ना नहीं भूले. बिहार के प्रेम भरद्वाज के कल और आज में एक बड़ा परिवर्तन यह भी है - बिहार भी और दिल्ली भी दोनों उन्हें अपना बता रहे हैं... जबकि हैं वो सिर्फ साहित्य के, ये मैं जानता ह...
हर जगह की तरह पटना पुस्तक मेले में भी पाखी संपादक प्रेम भारद्वाज अपनी छाप छोड़ना नहीं भूले. बिहार के प्रेम भरद्वाज के कल और आज में एक बड़ा परिवर्तन यह भी है - बिहार भी और दिल्ली भी दोनों उन्हें अपना बता रहे हैं... जबकि हैं वो सिर्फ साहित्य के, ये मैं जानता ह...
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रवीन्द्र कालिया - दस्त़खत (दिसंबर 2013) | Ravindra Kalia - Dastakhat (Dec 2013)
इस बात को ज़्यादा वक्त नहीं हुआ, जब भारत के अधिसंख्य नगरों में यातायात के साधन इक्के और ताँगे और बाइसिकल ही हुआ करते थे। उससे भी पहले घोड़ों और हाथियों की सेना हुआ करती थी और इन्हीं के बल पर हार-जीत के निर्णय हो जाया करते थे। फिर यकायक रिक्शा साइकल दौड़ने लगी...
इस बात को ज़्यादा वक्त नहीं हुआ, जब भारत के अधिसंख्य नगरों में यातायात के साधन इक्के और ताँगे और बाइसिकल ही हुआ करते थे। उससे भी पहले घोड़ों और हाथियों की सेना हुआ करती थी और इन्हीं के बल पर हार-जीत के निर्णय हो जाया करते थे। फिर यकायक रिक्शा साइकल दौड़ने लगी...
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